शरीर को फिट कैसे बनाये

शरीर को फिट कैसे बनाय

शरीर को फिट कैसे बनाये



फिटनेस का परिचय

फिटनेस क्या है, इसे बहुत से लोग नहीं समझ पाते हैं और हर व्यक्ति इसे अपने ढंग से परिभाषित करता है। फिटनेस प्रोफेशनल को यह समझना होगा कि फिटनेस किसी एक बात तक सीमित नहीं होता है बल्कि इसके 5 पहलू होते हैं। इन सभी 5 पहलुओं में सुधार आने के बाद ही व्यक्ति को पहले से अधिक फिट माना जा सकता है।
फिटनेस प्रोफेशनलों को यह समझना होगा कि उनके पास चाहे जिस वर्ग के लोग (गृहिणी, अभिनेता, कॉर्पोरेट एक्जीक्यूटिव, खिलाड़ी, किशोर, वृद्ध वरिष्ठ नागरिक) आएँ, उनके फिटनेस कार्यक्रम में फिटनेस के सभी 5 पहलुओं के लिए व्यायामों का एक खास समूह शामिल होना चाहिए।
चूँकि शरीरविज्ञान के अनुसार सभी मनुष्यों का शारीरिक गठन समान है, ऐसा कोई व्यक्ति वर्ग नहीं है जिसके लिए फिटनेस के सभी 5 पहलू जरूरी नहीं हों। ऊपर लिखित सभी वर्गों के लोगों का एकसमान फिटनेस लक्ष्य यही होना चाहिए कि फिटनेस के सभी 5 पहलुओं में सुधार आए जिससे जीवन बेहतर हो सके।
अंगों की कमजोरी से बुढ़ापे (एजिंग थू डिजनरेशन) के कारण फिटनेस के सभी 5 पहलुओं में व्यक्ति का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रह पाता है. इसलिए बुढ़ापे से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि फिटनेस के सभी पहलुओं को समान महत्व दिया जाए।
किसी भी खेल से जुड़े खिलाड़ी (मैराथन दौड़, पावर लिफ्टिंग, जिमनास्टिक्स, मुक्केबाजी, स्प्रिंटिंग, फुटबॉल, टेनिस, स्कवैश) को अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए अपने कंडीशनिंग व्यायाम में फिटनेस के सभी 5 पहलुओं को शामिल करना होगा।
किसी व्यायाम विशेष (योग, पिलैटीज, स्विस बॉल कोर ट्रेनिंग, वेट ट्रेनिंग, स्पिनिंग, डांस एरोबिक्स आदि) में विशेषज्ञता प्राप्त करने वाले फिटनेस प्रोफेशनलों को एक बड़ी गलती से बचने की जरूरत है। वे यह मानने की गलती करते हैं कि उन्हें जिस व्यायाम में विशेषज्ञता प्राप्त है. केवल वही सामान्य फिटनेस प्राप्त करने के लिए जरूरी है। उन्हें व्यायाम की विशेषता समानी चाहिए। फिटनेस के हर पहलू के लिए एक अलग व्यायाम होता है। सामान्य फिटनेस को बेहतर बनाने के लिए इन सभी प्रकारों को पूर्ण व्यायाम कार्यक्रम में शामिल करना जरूरी है।

फिटनेस के 5 पहलू

फिटनेस के 5 पहलू


कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स (ह्दय एवं रक्तवाहिनियों की सहनक्षमता)

ऑक्सीजनयुक्त रक्त को बिना थके लंबी अवधि तक कार्यरत स्केलेटल मसलों (कंकालीय मांसपेशियों) तक पहुँचाने की कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम व रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन प्रणाली) की क्षमता।

मस्क्युलर एंड्युरन्स (मांसपेशियों की सहनक्षमता)

लंबी अवधि तक बिना थके लगातार उप-अधिकतम स्तरों पर संकुचित होने की स्केलेटल मसल या स्केलेटल मसलों के समूह की क्षमता ।

मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ (मासंपेशियों और कंकाल की शक्ति)

यह कंकालीय मांसपेशी या एक कंकालीय मांसपेशियों के समूह के लिए अधिक से अधिक संकुचन में बल उत्पन्न करने के रूप में परिभाषित है।

फ्लेक्सिबिलिटी (लचक)

यह ज्वाइंटों (जोड़ों) के आसपास पूरी और हर तरह की गति करने की शारीरिक क्षमता है। यह क्षमता स्केलेटल मसलों की इलैस्टिसिटी (लचकीलापन) को खोने से बचाकर प्राप्त की जाती है

आइडियल बॉडी कंपोजिशन (आदर्श शारीरिक रचना)

यह व्यक्ति द्वारा अडिपोस टिश्यू (चर्बीयुक्त तंतु) और लीन बॉडी मास (चर्बीरहित भार) के आदर्श अनुपात को बनाए रखने की क्षमता है। पुरुष को आइडियल बॉडी कंपोजिशन वाला व्यक्ति उस स्थिति में कहा जाता है जब उसके पूरे वजन में अडिपोस टिश्यू का योगदान 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो। स्त्री को आइडियल बॉडी कंपोजिशन याला व्यक्ति उस स्थिति में कहा जाता है जब उसके पूरे वजन में अडिपोस टिश्यू का योगदान 20 प्रतिशत से अधिक नहीं हो।

ऊपर वर्णित फिटनेस के 5 पहलू जीवन और प्रतिस्पर्धात्मक खेल में परफॉर्मेंस बेहतर करने में कैसे मदद करते है?

फिटनेस

कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स

फिटनेस के इस पहलू के कमजोर होने से आगे लिखे काम मुश्किल हो जाते हैं एक बार में कई पलोरों पर चढ़ना, टहलना जॉगिंग लंबी दूरी के लिए दौड़ना व तैरना, टेनिस, स्कवैश और फुटबॉल के खेल में आखिर तक टिके रहना या प्रतिस्पर्धात्मक बॉक्सिंग में 9 राउंड तक टिके रहना, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग व्यायाम के आखिरी सेट तक तीव्रता के साथ टिके रहना। अति सीमित कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स वाले व्यक्ति को ऊपर लिखी गतिविधियों के दौरान कार्डिएक अरेस्ट (हृदयगति का बंद हो जाना) भी हो सकता है। I

मस्क्युलर एंड्युरन्स

फिटनेस के इस पहलू के कमजोर होने से उन गतिविधियों के दौरान समस्याएँ होती हैं जिनका उल्लेख कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स के प्रसंग में किया गया है। हालांकि, शरीर के जल्दी थक जाने का कारण मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम होता है न कि कार्डियोरेस्पिरेटरी सिस्टम। मस्क्युलर एंड्युरन्स की कमी वाले व्यक्ति को दौड़ते समय काम आ रहे स्केलेटल मसलों में बनने वाले लैक्टिक एसिड के ऊँचे स्तर से बहुत कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए, क्याड्रिसेप, हैमस्ट्रिंग, ग्लुटियल मसलों और काफ (पिंडली) में मस्क्युलर एंड्युरन्स के नहीं होने से व्यक्ति को बहुत तेज इदयगति न होते हुए भी सीढ़ी चढ़ते समय रुकना होगा।

मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ

फिटनेस के इस पहलू में कमी आने से शरीर समय से पहले कमजोर हो जाता है जिससे ऑस्टिओ-आरथ्राइटिस (जोड़ों की सूजन) और स्पॉन्डिलोसिस आदि जैसे रोग हो जाते हैं। मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम के कमजोर होने से शरीर को प्रतिरोध के विरुद्ध बल वाले कार्य के दौरान चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। आजकल सभी खिलाड़ियों को कौशल के अलावा गति और शक्ति की जरूरत होती है। किसी भी खेल में कोई खिलाड़ी मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम के कमजोर होने पर तमाम कौशल के बावजूद सफल नहीं हो सकता है। इससे खेल के दौरान चोट लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम के बहुत कमजोर होने से चलने-फिरने की क्षमता भी जा सकती है।

फ्लेक्सिबिलिटी

चोट से बचने के लिए पर्याप्त फ्लेक्सिबिलिटी का होना जरूरी है। अपनी इलैस्टिसिटी खो चुके मसल के उस समय फटने की आशंका अधिक होती है जब किसी जोड़ की पूरी क्षमता से हिलने-डुलने की कोई गतिविधि हो। शरीर का आइडियल न्यूट्रल पोस्चर (आदर्श तटस्थ मुद्रा) तभी बना रह सकता है जब शरीर फ्लेक्सिबिल हो। फ्लेक्सिबिलिटी के खोने से होने वाली पोस्चर-संबंधी समस्या का एक उदाहरण हैमस्ट्रिंग फ्लेक्सिबिलिटी की अनुपस्थिति है। इससे हिप बकेट के पीछे की दिशा के झुकाव से लंबर रीढ़ का नैसर्गिक लोडोंटिक कर्वेचर (टेढ़ापन) चला जाता है। इस असामान्य पोस्चर (मुद्रा) से पीठ के निचले हिस्से में पीड़ा और दर्द हो सकता है और इससे फर्श से कोई चीज उठाने जैसा आसान काम करते समय प्रोलैप्स्ड इंटरवर्टिब्रल डिस्क (दो कशेरुकाओं (वर्टीब्रेटों) के बीच में स्थित चक्रिका (डिस्क) का अपने स्थान से हट जाना) जैसी गंभीर समस्याएँ भी हो सकती हैं जिनसे व्यक्ति के परफॉर्मेंस में बहुत कमी आ जाती है।


आइडियल बॉडी कंपोजिशन

चूँकि यह फैट (चर्बी) और लीन मास (चर्बीरहित वजन) का अनुपात है, इसलिए इन दोनों ततुओं में अंतर को जानना महत्वपूर्ण है। लीन मास में टोन (सुदृढ़ता) और शेप (आकार) होता है जबकि फैट में ये दोनों नहीं होते हैं। इसलिए लीन मास में बढ़ोतरी से शरीर को सही आकार मिलता है और उसे मजबूती व टोन प्राप्त होते हैं। फैट में बढ़ोतरी से शरीर बेडौल हो जाता है और इसका टोन नष्ट हो जाता है। लीन मास मेटाबोलिक दृष्टि से ऐक्टिव (चयापचय क्रिया में सक्रिय) होता है जबकि फैट के मेटाबोलिक दृष्टि से ऐक्टिव नहीं होने के कारण ऊर्जा के खर्च होने में इससे सीधे मदद नहीं मिलती है। हालाँकि यह शरीर में ऊर्जा के भंडार की तरह काम करता है, जिसका उपयोग लंबे समय तक बनी रहने वाली कैलोरी की कमी के दौरान होता है। इसलिए लीन मास में बढ़ोतरी से बेसल मेटाबोलिक रेट (बीएमआर) (यानी सापेक्ष विश्रामावस्था में जिस दर से कैलोरी खर्च होती है वह दर) बढ़ जाता है। लीन मास में कमी
आने से बीएमआर कम हो जाता है जिससे शरीर में अधिक फैट जमा हो जाता है। लीन मास बढ़ने से मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम की ताकत बढ़ती है जबकि फैट में बढ़ोतरी से कार्डियोवैस्क्युलर रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।


फिटनेस के 5 पहलुओं की परस्पर निर्भरता को समझना


कार्डियोवैस्क्युलर एंश्युरन्स

कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स के बिना मस्क्युलर एंड्युरन्स की परीक्षा लेना या इसका उपयोग करना संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति के पैरों में बहुत अधिक मस्क्युलर एंड्युरन्स होने के बावजूद वह कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स के बिना लंबे समय तक नहीं दौड़ सकता है। एक बार कार्डियोवैस्क्युलर थकान होने पर शरीर की मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ का इस्तेमाल करना असंभव हो जाता है। उदाहरण के लिए, बहुत अधिक मस्क्युलर ताकत वाला व फुर्तीला मुक्केबाज भी कार्डियोवैस्क्युलर थकान होने पर जोर से मुक्का मारने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।

मस्क्युलर एंड्युरन्स

मस्क्युलर एंड्युरन्स के बिना कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स की परीक्षा लेना या इसका उपयोग करना संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति में बहुत अधिक कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स होने के बावजूद वह पैरों में पर्याप्त मस्क्युलर एंड्युरन्स नहीं होने पर लंबे समय तक नहीं दौड़ सकता है। बहुत अधिक कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स वाले टेनिस खिलाड़ी में अगर मस्क्युलर एंड्युरन्स की कमी हो तो वह कार्डियोवैस्क्युलर थकान नहीं होने के बावजूद पूरे मैच के दौरान लंबी अवधि तक बॉल को लगातार जोर से नहीं मार सकता है।

मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ

फिटनेस के इस पहलू में कमी आने से मैराथन दौड़ जैसी बहुत अधिक कार्डियोवैस्क्युलर व मस्क्युलर एंड्युरन्स की आवश्यकता वाली गतिविधि संभव नहीं है क्योंकि तारकोल की सड़क पर 42 किमी दौड़ने का दबाव शरीर सहन नहीं कर पाएगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि बहुत अधिक मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ के बिना मैराथन दौड़ में भाग लेते समय घुटने, टखने या पीठ के निचले हिस्से की चोट से बचना संभव नहीं है। ताकत के बिना बहुत अधिक फ्लेक्सिबिलिटी से बेहतर कार्य करने में मदद नहीं मिलती है।

फ्लेक्सिबिलिटी

फ्लेक्सिबिलिटी के नहीं होने से एंड्युरन्स की आवश्यकता वाली गतिविधि और बहुत अधिक ताकत लगाकर किए जाने वाले काम के दौरान चोट लग सकती है। उदाहरण के लिए, अगर काफ और हैमस्ट्रिंग अकड़े हुए हों तो दौड़ते समय घुटने और पीठ के निचले हिस्से में चोट लग सकती है। अगर फ्लेक्सिबिलिटी की अनदेखी हो तो व्यक्ति अपने शरीर को उस सही पोस्चर में नहीं ला सकता है जिसकी जरूरत किसी वेट ट्रेनिंग व्यायाम को सही आकार और तकनीक सहित करने के लिए होती है। उदाहरण के लिए, अकडे हुए हैमस्ट्रिंग के कारण स्कवैट करते समय व्यक्ति का लंबर हमेशा मुड़ जाता है जिससे चोट लग सकती है।

आइडियल बॉडी कंपोजिशन

अगर पुरुष के शरीर में अडिपोस टिश्यू के 15 प्रतिशत और स्त्री के षरीर में 20 प्रतिशत बढ़ जाने से बॉडी कंपोजिशन अपने आदर्श रूप में नहीं रहता है तो फिटनेस परफॉर्मेंस के सभी पैरामीटर प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, बहुत अधिक मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ वाला व्यक्ति लैटिसिमस डॉर्सी, ट्रपीझियस, पोस्टिरियर (पिछले हिस्से का) डेल्टॉइड, बाइसेप्स ब्रैकिआई और फोरआर्म फ्लेक्सर और एक्सटेन्सर की सम्मिलित ताकत का इस्तेमाल करके अपने शरीर को दीवार के ऊपर उठा सकता है। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में अवांछित व अनुपयोगी फैट की बहुत अधिक मात्रा हो तो अच्छी-खासी ताकत होते हुए भी वह अपना वजन उठाने में सक्षम नहीं हो सकता है। अच्छे एंड्युरन्स (कार्डियोवैस्क्युलर व मस्क्युलर दोनों) वाला व्यक्ति 10 फ्लोर आसानी से चढ़ सकता है। हालाँकि अगर किसी व्यक्ति के शरीर में अडिपोस टिश्यू की बहुत अधिक मात्रा हो तो अच्छी-खासी ताकत होने के बावजूद वह बहुत अधिक थक जाएगा क्योंकि उसकी हालत अच्छे एंड्युरन्स वाले उस व्यक्ति की तरह होती है जो दो भारी बैग (अनुपयोगी फैट का वजन दर्शाने वाले) लादकर 10 फ्लोर चढ़ता है। बहुत कोमल व लचकीले स्केलेटल मसल वाले व्यक्ति को अपने जोड़ों को हर तरह से हिलाने-डुलाने में कोई समस्या नहीं होगी। हालाँकि, जिस व्यक्ति के पेट पर बहुत अधिक अडिपोस टिश्यू हो वह कोमल मसलों के होने के बावजूद अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकता है क्योंकि उसका पेट उसके हिप ज्वाइंट के पूरी तरह से डिलने-डुलने के आड़े आएगा। इस प्रकार आइडियल बॉडी कंपोजिशन के नहीं होने से फ्लेक्सिबिलिटी भी प्रभावित होती है।

ऊपर के खंड में यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है कि सामान्य फिटनेस के लिए और परफॉर्मेंस को बेहतर बनाने में फिटनेस के किसी एक पहलू पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता है। अगर फिटनेस का कोई एक पहलू भी कमजोर हो जाता है तो इससे शरीर अन्य 4 पहलुओं की उत्तम अवस्था के बावजूद बहुत अच्छी तरह काम नहीं कर पाता है। जीवन स्तर सुधारने, वृद्ध होने की प्रक्रिया का
सामना करने और सभी प्रतिस्पर्धात्मक खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने का रास्ता एक ही है। फिटनेस के अपने प्रोग्राम में फिटनेस के इन सभी पहलुओं को शामिल करके इन पर ध्यान दें। सभी 5 पहलुओं को समान महत्व मिलना चाहिए।

फिटनेस के 5 पहलुओं में सुधार कैसे लाएँ

कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स

फिटनेस के इस पहलू को लंबी अवधि तक बिना रुके कम तीव्रता वाले व्यायाम करके बेहतर बनाया जाता है। ऐसे व्यायाम एरोबिक प्रकार के होते हैं, जिनमें 3 मिनट की कम तीव्रता वाली मस्क्युलर गतिविधियाँ होती हैं जिनके दौरान ऑक्सीजन की उपस्थिति में ए.टी.पी (अडेनोसिन ट्रायफॉस्फेट) दुबारा सिंथेसाइज (संश्लेशित) होता है। इन्हें सामान्य रूप से कार्डियोवैस्क्युलर व्यायाम या एरोबिक व्यायाम कहा जाता है और इनमें टहलना, जॉगिंग, दौड़ना, तैरना, स्किपिंग, साइकिल चलाना, सीढ़ी चढ़ने का अनुभव कराने वाली स्टेपर, स्टेअर मिल जैसी मशीनों व इलिप्टिकल ट्रेनर, रोइंग मशीन आदि का उपयोग शामिल है। व्यायाम की तीव्रता इतनी कम होनी चाहिए कि व्यक्ति कम से कम 20 मिनट तक वह क्रिया लगातार कर सके। जब व्यक्ति 60 मिनट तक लगातार एक क्रिया आराम से कर सके तो स्पीड (गति), इन्क्लिनेशन (झुकना) या रेजिस्टन्स (प्रतिरोध) में बढ़ोतरी करके तीव्रता बढ़ा देनी चाहिए। यह एक गलत है धारणा है कि टेनिस और स्कवैश जैसे खेलों से खिलाड़ियों के कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स में वृद्धि होती है। ये स्टॉप ऐंड स्टार्ट (रुककर दुबारा शुरु करना) गतिविधियों हैं जिनसे कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स बेहतर नहीं हो सकता है बल्कि इनमें लंबा मैच अच्छी तरह से खेलने के लिए कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स की जरूरत होती है। इन खेलों में सक्रिय व्यक्ति अगर नियमित रूप से कार्डियो व्यायाम करे तो वह अपने परफॉर्मेस को बेहतर बना सकता है।

मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ

6-8 से अधिक रिपिटिशन को संभव नहीं बनाने वाले हेवी वेट (मारी वजन) का उपयोग करते हुए हाई इंटेन्सिटि वेट ट्रेनिंग लेकर फिटनेस के इस पहलू को बेहतर बनाया जा सकता है। अधिकतम 6-8 रिपिटिशनों का यह व्यायाम केवल अनुभवी ट्रेनर की देखरेख में करना चाहिए जिसे वेट ट्रेनिंग में कम से कम 3 वर्षों का अनुभव है। शरीर को इस प्रकार की वेट ट्रेनिंग से मिली अतिरिक्त ताकत का रोजाना के काम में लाभ मिले, इसके लिए सही व्यायाम चुनना बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकतम फंक्शनल स्ट्रेंथ (ऐसी ताकत जिसका इस्तेमाल रोजाना के काम में किया जा सके) प्राप्त करने के लिए के 11 आपके वेट ट्रेनिंग प्रोग्राम में फ्री वेट के साथ अनसपोर्टेड कंपाउंड और पावर मूवमेंटों को शामिल करने की सलाह देता है।

फ्लेक्सिबिलिटी

फिटनेस का यह पहलू स्ट्रेच करने से सुधर सकता है। K11 स्टैटिक पैसिव स्ट्रेच (स्थिर निश्क्रिय स्ट्रेच) करने की सलाह देता है। ये स्ट्रेच थोड़ी असुविधाजनक स्थिती में कम से कम 10 सेकंड तक रुककर इस लक्ष्य के साथ किए जाने चाहिए कि हर बार व्यायाम करते समय यह अवधि बढ़े। स्ट्रेच हर व्यायाम वाले दिन करना चाहिए और अधिकतम सुरक्षा और लाभ के लिए इसे हर बार व्यायाम के अंत में करना चाहिए।

आइडियल बॉडी कंपोजिशन

फिटनेस के सभी अन्य 4 पहलुओं के विशेष व्यायाम प्रकारों पर ध्यान देते हुए और उन्हें बेहतर तरीके से करने के लिए स्पोर्ट न्यूट्रिशन के तत्वों पर आधारित पोषक आहार (सक्रिय व्यक्ति का पोषण) का सेवन करके फिटनेस के इस पहलू को प्राप्त किया जा सकता है। शरीर में अधिक मसलों के निर्माण के लिए सभी प्रकार के व्यायाम मस्क्युलोस्केलेटल सिस्टम पर दबाव डालते हैं और इसे ब्रेकडाउन (विघटित) करते हैं। इसके कारण मसल निर्माण के लिए आवश्यक पोषक प्रोटीन की जरूरत बढ़ जाती है। इसलिए अगर शरीर में प्रोटीन की जरूरत पूरी नहीं हो (तीव्रता के अनुसार लीन बॉडी वेट के हर किलोग्राम के लिए 1.5 से 3 ग्राम) तो व्यायाम से लीन टिश्यू (फैटरहित तंतु) में बढ़ोतरी संभव नहीं है। कम से कम 10 प्रतिशत कैलोरी एमयूएफए (मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड) और पीयूएफए (पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड) से मिलनी चाहिए। इन तेलों से शरीर को आवश्यक फैटयुक्त एसिड (अम्ल) मिलते हैं जिनसे आदर्श मेटाबोलिज्म (चयापचय) को कायम रखने में मदद मिलती है। कार्बोहाइट्रेड को मुख्य रूप से जटिल कार्बोहाइट्रेड होना चाहिए जिससे इंसुलिन अचानक तेजी से नहीं बढ़ता है (साधारण चीनी के सेवन से इंसुलिन अचानक बढ़ता है जिससे शरीर में फैट बनने में मदद मिलती है)। कार्बोहाइट्रेड की मात्रा व्यक्ति की शारीरिक बनावट पर निर्भर होती है। दुबले व्यक्ति को प्रोटीन के संचय के लिए बहुत अधिक कार्बोहाइट्रेड की जरूरत होती है और मोटे व्यक्ति) को अपने षरीर में जमा फैट हटाने के लिए इसकी मात्रा कम करनी होती है। संक्षेप में, व्यायाम और सही पोषण के मेल से व्यक्ति को आइडियल बॉडी कंपोजिशन मिलता है।

संपूर्ण सामान्य फिटनेस को बेहतर बनाने का फॉर्मूला इस प्रकार है

कार्डियोवैस्क्युलर (एरोबिक) गतिविधियों जिनमें सप्ताह में कम से कम 3 बार शरीर के निचले व ऊपरी दोनों हिस्सों की गतिविधियाँ (क्रॉस ट्रेनिंग) शामिल हैं सप्ताह में अधिकतम 4 दिन स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जिसमें अनसपोर्टेड कंपाउंड व पावर मूवमेंट अधिक होते हैं + हर दिन कार्डियो व स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के बाद स्ट्रेचिंग (स्टैटिक पैसिव स्ट्रेच) उपयुक्त स्पोर्ट्स न्यूट्रिशन भरपूर आराम व स्वास्थ्य लाभ =  = बेहतर सामान्य फिटनेस 

फिटनेस के मूल तत्व

स्पेसिफिसिटी (विशिष्टता)

जैसा कि नाम से जाहिर है, फिटनेस के हर पहलू से जुड़ी एक खास गतिविधि होती है जिससे इसे सुधारा जा सकता है। किसी एक पहलू या व्यायाम प्रकार से फिटनेस के सभी पहलुओं को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, स्ट्रेंचिग से कंवल लचीलापन बढ़ सकता है और इससे फिटनेस का कोई दूसरा पहलू नहीं सुधर सकता है। कार्डियोवैस्क्युलर ट्रेनिग से मस्क्युलोस्केलेटल स्ट्रेंथ नहीं बढ़ सकता है और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से कार्डियोवैस्क्युलर एंड्युरन्स को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है।

प्रोग्रेशन (क्रमिक वृद्धि)

लाभ के अनुपात में कार्यभार में धीमी गति से बढ़ोतरी, जिससे चोट के खतरे के बिना पूरे शरीर का फिटनेस बेहतर होता है।

ओवरलोड (अतिभार)

जब शरीर को रोजाना की गतिविधियों में अनुभव किए जाने वाले दबाव / अतिभार से अधिक दबाव / अतिभार का सामना करना पड़ता है तब इससे कार्य में उपयोग किए जाने वाले मसलों की परफॉर्मेंस बढ़ती है।

ऐडप्टेशन (अनुकूलन)

जब शरीर अपने कार्यभार का अभ्यस्त हो जाता है तब याक्ति के फिटनेस स्तर (एरोबिक और अनऐरोबिक) को ऊँचा करने के लिए शारीरिक विकास करने या शारीरिक लाभ पहुंचाने में इसकी (शरीर की कोई भूमिका नहीं रहती है। उदाहरण के लिए ताकत में वास्तविक बढ़ोतरी के लिए वेट ट्रेनिंग में स्वाभाविक प्रीप्रेशन के रूप में घाउंडेज में वृद्धि करनी होगी।


इंटेन्सिटी (तीव्रता)

कार्डियोवैस्क्युलर इंटेन्सिटी को मैक्सिमम हार्ट रेट (एमएचआर यानी अधिकतम हृदयगति) के प्रतिशत के रूप में मापा जा सकता है। एमएचआर का फॉर्मूला इस प्रकार है एमएचआर = 220 - उम्र। कार्डियो व्यायाम में अधिकतम फायदे के लिए लक्ष्य हृदयगति को कार्वोनेन फॉर्मूले से निर्धारित किया जा सकता है। यह फॉर्मला इस प्रकार है. एमएचआर रेस्टिंग हार्ट रेट यानी आरएचआर (विश्रामावस्था में हृदयगति) x वांछित तीव्रता का प्रतिशत + आरएचआर = टार्गेट हार्ट रेट (लक्ष्य हृदयगति यानी टीएचआर)। रेजिस्टन्स स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के दौरान तीव्रता को पर रिपिटिशन मैक्स यानी आरएम (प्रति अधिकतम दोहराव) में मापा जाता है। तीव्रता की अधिकतम सीमा 1 आरएम यानी वह वजन लेना है जिसके साथ केवल एक रिपिटिशन किया जा सकता है। इस अधिकतम तीव्रता को शरीर सह नहीं सकता है और एक बार इससे नुकसान पहुँचने पर इसकी शारीरिक भरपाई भी नहीं होती है। इसलिए उच्च स्तर पर हमारी अधिकतम तीव्रता 4-6 आरएम होती है।

ड्यूरेशन (अवधि)

कोई व्यायाम करने में लगा समय। एरोबिक गतिविधि में इसे टार्गेट हार्ट रेट जोन में इस गतिविधि में लगे समय की गणना करके मापा जाता है। फिटनेस के स्तर के आधार पर प्रतिभागी की अवधि भिन्न हो सकती है।

रिवर्सिबिलिटी (पुरानी अवस्था में लौटना)

फिटनेस स्थायी नहीं होता है। इसलिए आपकी कार्डियोवैस्क्युलर क्षमता और मस्क्युलर स्ट्रेंथ धीरे-धीरे घटते हुए व्यायाम से पहले के स्तर पर उलट जाते हैं। मसलों के कम होने को एट्रोफी (आकार में कमी) कहा जाता है जो हायपरट्रोफी (आकार में वृद्धि) का विपरीत अर्थ देता है। औसत स्ट्रेंथ कमी की दर स्ट्रेंथ प्राप्ति की दर से आधी होती है

व्यायाम के लाभ

इससे ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) कम हो जाता है

इससे हृदय रोग की आशंका कम हो जाती है

इससे लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (कम घनत्व वाले फैटयुक्त प्रोटीन) कम होते हैं

इससे हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (अधिक घनत्व वाले फैटयुक्त प्रोटीन) में वृद्धि होती है

इससे ऑस्टियोपोरोसिस (अस्थिसुशिरता) का खतरा कम होता है / बोन डेन्सिटी (अरिध घनत्व) में वृद्धि होती है

इससे फैट कम होता है

इससे वयस्कों में मधुमेह का खतरा कम हो जाता है

इससे कैपिलराइजेशन (कोशिकाओं की संख्या) बढ़ता है

इससे कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया बढ़ते हैं

इससे रेस्टिंग हार्ट रेट कम होता है

इससे एक्सरसाइज हार्ट रेट (व्यायाम हृदयगति) कम होता है

इससे इंजेक्शन फ्रैक्शन (संकुचन के समय हृदय से निकलने वाले रक्त का प्रतिशत) बढ़ता है

इसरो स्ट्रोक पॉल्यूम (संकुचन के समय हृदय के बायें वेंट्रिकल (निलय) द्वारा निकाले गए रक्त की मात्रा) बढ़ता है

इससे एनएरोबिक थ्रेसहोल्ड (व्यायाम की वह अवस्था जब मसल ऊर्जा के लिए ऑक्सीजरहित तत्वों पर निर्भर हो जाते हैं) सुधरता है

इससे एरोबिक ग्लाइकोलाइसिस (ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज का लैक्टेट में बदल जाना) और फैटी एसिड ऑक्सिडेशन (असंतृप्त अम्ल ऑक्सीकरण) में सुधार आता है

इससे पोस्चर सुधरता है

इससे चुस्ती, संतुलन और लबीलापन में सुधार आता है

इससे सॉफ्ट टिश्यू (कोमल तंतु) में लगने वाली चोट से बचाव होता है

इससे ताकत बढ़ती है

इससे बढ़ती उम्र से संबंधित समस्याओं का सामना करने में मदद मिलती है


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